मैं लोकतंत्र हुं , सिसकता ,सुबकता ,बिलखता तड़पता , मैं मौनतंत्र हुं ,मैं लोकतंत्र हुं
गरीबों कि आवाज दबा मैं अमीरों कि आवाज बना मैं खुद पर शर्मिंदा ,मैं एक शर्मतंत्र हुं ,मैं लोकतंत्र हुं
नेताओं का निजतंत्र बना मैं ,पूंजीपतियों का षड़यंत्र बना मैं अपने ही बेटों का गला दबाता,मैं एक यमतंत्र हुं ,मैं लोकतंत्र हुं
घोटालों का सुतंत्र बना मैं ,अबलाओं का कुतंत्र बना मैं अश्रु बहाता खुद के भाग्य पर ,मैं एक ,मैं लोकतंत्र हुं
ईमानदारों का परतंत्र बना मैं ,बेईमानों का स्वतंत्र बना मैं बन मूक,देखता सब चीजों को ,मैं एक मजबूर तंत्र हुं ,मैं लोकतंत्र हुं
पर क्या यह मेरी गलती है ?,अपने ही नपुंसक बेटो ने मेरा यह हाल किया हैजो हसतां था राजतन्त्र पर ,उसका हाल बेहाल किया है ,आवाह्न करता फिर भी ,अपने बेटों से .............,मैं एक बेशर्म तंत्र हुं ,मैं लोकतंत्र हुं
उठो जागों !ऐ देश के युवा सपूतों ,अब की बारी तुम्हारी है इस बार अगर तुम चुक गए ,तो यह हार तुम्हारी है !!!!!
तो यह हार तुम्हारी है !!!!! , तो यह हार तुम्हारी है !!!!! , तो यह हार तुम्हारी है !!!!!
धन्यवाद
सचिन